(मेरे प्रथम काव्य संग्रह ‘सपनों के हंस’ से एक गीत प्रस्तुत है... )
मेरे नयनों का दोष यही
कि उनमें तुम्हें बसाया है।...
जब-जब मैंने तृप्ति तलाशी
मुझको केवल प्यास मिली,
सुख को ढूँढ़-ढूँढ़ हारा पर
सुख की केवल लाश मिली।
मेरी खोजों का दोष यही कि
सब कुछ मिला पराया है।.
अनचाही पीड़ा से मेरे
युग -युग के अनुबंध हुए
कई जन्म की प्यासी रातों
से मेरे सम्बंध हुए
मेरे रिश्तों का दोष यही
कि सब कुछ मिला पराया है।...
जीवन के हर एक पड़ाव पर
मुझको नई थकान मिली
जले हुए से होंठ मिले औ’
बेबस सी मुस्कान मिली ।
मेरी खुशियों का दोष यही
कि उन पर दुख का साया है।...
मैं पतझर को रहा समेटे,
सब फागुन के मीत बने,
मेरी इकलौती करुणा से
बस पीड़ा के गीत बने।
मेरे गीतों का दोष यही
कि उनमें दर्द समाया है।...
- दिनेश गौतम
3 comments:
मैं पतझर को रहा समेटे,
सब फागुन के मीत बने,
मेरी इकलौती करुणा से
बस पीड़ा के गीत बने।
मेरे गीतों का दोष यही
कि उनमें दर्द समाया है।...विरह और वेदना के जल से सिंचित पंक्तियां !
रचना कर्म निर्विघ्न चलता रहे ....कामनाओं के साथ !
-सोनरूपा
जीवन के हर एक पड़ाव पर
मुझको नई थकान मिली
जले हुए से होंठ मिले औ’
बेबस सी मुस्कान मिली ।
मेरी खुशियों का दोष यही
कि उन पर दुख का साया है।...
वाह,
जैसे शब्दों और भावों का युगल गीत...!
बहुत बढि़या।
samay se pahle bhagya se jyada kise mila he.
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