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Friday, 23 September 2011

छत्तीसगढ अभिराम


 छत्तीसगढ अभिराम, हमारा छत्तीसगढ़ अभिराम,
सुबह मनोरम होती जिसकी और सुहानी शाम,.......


यहाँ सरगुजा बना मुकुट है मैनपाट को लेकर,
और पाँव में नूपुर जैसा दंतेवाड़ा सुंदर,
इंद्रावती चरण को छूकर बहती है अविराम।.....


राजिम की पावनता अपनी, बस्तर का भोलापन,
इस्पाती संकल्प भिलाई से पाता है जन-मन,
डोंगरगढ़ देता ऊँचाई देवी माँ का धाम।


यहाँ सभी जन बंधुभाव से रहते हैं मिलजुलकर,
धर्म-भेद या पंथ -भेद के चिन्ह नहीं जन-मन पर,
यहाँ प्रेम, भाईचारा है, नफरत का क्या काम।........


हैं सपूत हम छत्तीसगढि़.या मन के भोले -भाले
श्रम की पूजा करते हैं हम मेहनत करने वाले,
जब तक लक्ष्य न पाएँ तब तक हमें कहाँ विश्राम।.......


सिरपुर और मल्हार यहाँ, स्वर्णिम अतीत के गायक,
वर्तमान की प्रगति राष्ट्र-सिरमौर कहाने लायक,
आनेवाला कल भी होगा बस अपने ही नाम।........
                                               
                                                                                             - दिनेश गौतम


1 comment:

महेन्‍द्र वर्मा said...

छत्तीसगढ़ की महिमा का बखान करता सुंदर गीत।

ब्लाग जगत में आपका स्वागत है।