ग़र जड़ों में हो नमी तो, फिर हरापन आएगा
तुम घटा की चाह रक्खो, फिर से सावन आएगा।
रेत है पैरों के नीचे, दूर तक मंजि़ल नहीं,
पर अगर चलते रहे तो एक उपवन आएगा।
झर चुके हैं पत्र सारे, डाल हर वीरान है,
पेड़ को पर आस है ये , फिर से यौवन आएगा।
होटलों की चाकरी औ बूट-पाॅलिश के लिए
आप कोई नाम ढूँढें, एक बचपन आएगा।
देह का घटिया प्रदर्शन, बेहयाई, नग्नता,
क्या कभी सोचा था हमने, ये खुलापन आएगा?
राजनीति के भँवर में फँस गए हैं हम यहाँ,
जो उबारेगा हमें फिर, क्या वो शासन आएगा?
कंस कितने हो गए , दुश्शासनों की क्या कमी,
पर न जाने पीर हरने, कब वो मोहन आएगा?
- दिनेश गौतम
4 comments:
गर जड़ों में हो नमी तो, फिर हरापन आएगा
तुम घटा की चाह रक्खो, फिर से सावन आएगा।
आशा जगाती हुई सुंदर गीतिका।
धन्यवाद सर, इसी तरह उत्साह बढ़ाते रहें।
सकारात्मक सोच से युक्त खूबसूरत रचना....
dhanyawad sangya ji....
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