क्या होगा भगवान, आखिर क्या होगा?
यहाँ सुमन के अश्रु ,शूल के चेहरे पर मुस्कान ...।
आखिर क्या होगा?
अन्यायी के आँगन, खिलती जाती रोज़ बहारें,
और न्याय की आशा में सच फिरता मारे मारे।
जीना दूभर सद्विचार का, चिंतन बुरा पनपता,
हर मुख आज त्याग लज्जा को, तम की माला जपता।
अपने हाथों स्वयं मनुजता करे गरल का पान ...।
आखिर क्या होगा?
यहाँ दीप का गला दबाएँ, मिलकर रोज अँधेरे,
अट्टहास करता कालापन, उजियारे को घेरे,
खूब जमाए रहते महफिल, पापी और लुटेरे,
दुराचार के बादल होते जाते और घनेरे।
संकट में फँसते जाते हैं, सदाचार के प्राण ...।
आखिर क्या होगा?
स्वाभिमान का मान हुआ कम, धन की बढ़ी प्रतिष्ठा,
अपने स्वारथ की खातिर बदली लोगों ने निष्ठा।
लाज बेची दिख जाती है यहाँ कहीं पर नारी,
और कहीं सिसकी भरती है, अबला की लाचारी।
बिक जाता है यहाँ टके में नारी का सम्मान ...।
आखिर क्या होगा?
रक्त माँगता देश तुम्हारा, जाग सको तो जागो,
अपनी कुंठाओं को जीतो, दुःव्यसनों को त्यागो।
अपने कंधे पर जननी का, सारा बोझ उठा लो,
मातृभूमि की चिंता कर लो, उसको ज़रा सँभालो।
मिल पाएगी क्या जननी को, वही पुरानी शान...?
आखिर क्या होगा?