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Monday, 30 April 2012

इधर घोटाला है...


इधर घोटाला है, देखिए उधर घोटाला है,
राजनीति के दलदल में सबका मुँह काला है।

बातें हैं आदर्शों की पर करनी बिल्कुल उल्टी,
उनका यह अंदाज़ सभी का देखा- भाला है।

जो आता है फँस जाता है, स्वारथ के धागे में,
राजनीति है या कोई मकड़ी का जाला है।

पंचम सुर में झूठा गाए, बढ़चढ़कर इतराए,
सच के मुँह पर लगा हुआ अब तक इक ताला है।

गाँधी तू भी रोता होगा देश की इस हालत पर,
आखिर इसके सपनों को तूने भी पाला है।

सच कहने की सज़ा अगर दो, हँसकर मैं सह लूँगा
युग का हर सुकरात ज़हर का पीता प्याला है।
                                               - दिनेश गौतम

21 comments:

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया said...

सच कहने की सज़ा अगर दो, हँसकर मैं सह लूँगा
युग का हर सुकरात ज़हर का पीता प्याला है।

बहुत सुंदर प्रस्तुति,..बेहतरीन रचना के लिए बधाई,दिनेश जी....

MY RESENT POST .....आगे कोई मोड नही ....

dinesh gautam said...

धन्यवाद धीरेन्द्र जी, मेरी पोस्ट पर आपकी महत्वपूर्ण टिप्पणी के लिए। कृ्पा बनाए रखें।

रविकर said...

सुन्दर प्रस्तुति |
बधाई स्वीकारें ||

रविकर said...

आपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति
बुधवारीय चर्चा-मंच पर |

charchamanch.blogspot.com

रश्मि प्रभा... said...

गाँधी तू भी रोता होगा देश की इस हालत पर,
आखिर इसके सपनों को तूने भी पाला है।... :(

ANULATA RAJ NAIR said...

very very nice........
regards.

ANULATA RAJ NAIR said...

very very nice........
regards.

dinesh gautam said...

धन्यवाद रविकर जी, रश्मि जी और अनु जी। आपकी महत्वपूर्ण टिप्पणियों के लिए आभारी हूँ।

रजनीश तिवारी said...

बहुत सुंदर रचना । शुभकामनाएँ ।

Dr Xitija Singh said...

सच कहने की सज़ा अगर दो, हँसकर मैं सह लूँगा
युग का हर सुकरात ज़हर का पीता प्याला है।...

बहुत अच्छी रचना ... ये शे र बहुत पसंद आया ... आभार !!

dinesh gautam said...

धन्यवाद रजनीश जी ।

dinesh gautam said...

धन्यवाद क्षितिजा जी। आपने मेरी रचना पसंद की, इसी तरह आते रहिए।

दिगम्बर नासवा said...

गाँधी तू भी रोता होगा देश की इस हालत पर,
आखिर इसके सपनों को तूने भी पाला है..

सच कहा है ... गांधी बेचारा रोता होगा इनपे .. लाजवाब व्यंग है हर शेर ...

dinesh gautam said...

धन्यवाद दिगम्बर नासवा जी।

dinesh gautam said...
This comment has been removed by the author.
virendra sharma said...

पंचम सुर में झूठा गाए, बढ़चढ़कर इतराए,
सच के मुँह पर लगा हुआ अब तक इक ताला है।
देश की वर्तमान व्यवस्था पर करारा व्यंग्य .इन कुत्ताये लोगों के बारे में यही कहा जा सकता है -
सामने दर्पण के जब तुम आओगे ,
अपनी करनी पे बहुत पछताओगे
बढ़िया प्रस्तुति हर माने में अव्वल .


सोमवार, 7 मई 2012
भारत में ऐसा क्यों होता है ?
http://veerubhai1947.blogspot.in/
तथा यहाँ भीं सर जी -
चोली जो लगातार बतलायेगी आपके दिल की सेहत का हाल

http://kabirakhadabazarmein.blogspot.in/
गोली को मार गोली पियो अनार का रोजाना जूस
http://kabirakhadabazarmein.blogspot.in/2012/05/blog-post_07.html

dinesh gautam said...

धन्यवाद वीरू भाई जी!

कविता रावत said...

गाँधी तू भी रोता होगा देश की इस हालत पर,
आखिर इसके सपनों को तूने भी पाला है।
...आज तो ऐसी स्थिति हो चली कि अब गाँधी जी तो बस तिजोरी में ही सुहाते है बहुत लोगों को..
बहुत सुन्दर सार्थक सामयिक प्रस्तुति

dinesh gautam said...

thanks kavita ji.

dinesh gautam said...

धन्यवाद रविकर जी।

dinesh gautam said...

धन्यवाद रविकर जी।