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Thursday 19 April 2012

इक दिया जलता रहा...



याद के शीशे  में   चेहरा,    तेरा ही ढलता रहा,
मैं कि जैसे  पाँव नंगे,     आग पर चलता रहा।

जानता था वह नहीं   आएगा फिर से लौटकर,
फिर भी झूठी आस लेकर, खुद को मैं छलता रहा।

तेरी यादों ने बनाया इक अजब सा कारवाँ,
जब खयालों का मेरे  इक काफिला चलता रहा।

यूँ तो टूटा ही किए थे    ख़्वाब मेरे फिर भला,
एक सपना तुझको लेकर , दिल में क्यूँ पलता रहा?

रोक पाया वह न मुझको, उसको है  इसका मलाल,
आँसुओं के घूँट पीकर     हाथ बस मलता रहा।

मानता हूँ तेरे बँगले      में  ग़ज़ब थी रौशनी,
पर मेरे आँगन में भी तो,   इक दिया जलता रहा।
                                               - दिनेश गौतम

11 comments:

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया said...

मानता हूँ तेरे बँगले में ग़ज़ब थी रौशनी,
पर मेरे आँगन में भी तो,इक दिया जलता रहा।

सुंदर अभिव्यक्ति,बेहतरीन रचना,...दिनेश जी

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dinesh gautam said...

धन्यवाद धीरेन्द्र जी!

रविकर said...

सुन्दर प्रस्तुति |
आभार ||

शुभकामनाये ||

नीरज गोस्वामी said...

मानता हूँ तेरे बँगले में ग़ज़ब थी रौशनी,
पर मेरे आँगन में भी तो,इक दिया जलता रहा

वाह..दिनेश जी बेहतरीन रचना...

नीरज

dinesh gautam said...

धन्यवाद रविकर जी, नीरज जी, आभार आप दोनों का। इसी तरह आते रहिए।

vikram7 said...

behatariin rachana.

दिगम्बर नासवा said...

यूँ तो टूटा ही किए थे    ख़्वाब मेरे फिर भला,
एक सपना तुझको लेकर , दिल में क्यूँ पलता रहा?
Bahut khoob ... Chahe toote khwaab ... Dil to fir Bhi dekhna hi hai ... Lajawab sher hain sabhi ..

महेन्‍द्र वर्मा said...

आंगन का दिया ऐसे ही जलता रहे।

बहुत प्यारी ग़ज़ल।

दीपिका रानी said...

आखिरी शेर बहुत असरदार.. बधाई

सदा said...

मानता हूँ तेरे बँगले में ग़ज़ब थी रौशनी,
पर मेरे आँगन में भी तो,इक दिया जलता रहा
वाह ...अनुपम भाव संजोये हुए यह पंक्तियां ।

मेरा मन पंछी सा said...

मानता हूँ तेरे बँगले में ग़ज़ब थी रौशनी,
पर मेरे आँगन में भी तो,इक दिया जलता रहा
बेहतरीन भाव संयोजन
सुन्दर रचना.....