(आज पेश है मेरे काव्य संग्रह ‘सपनों के हंस’ से एक छंदमुक्त प्रेम कविता।)
रात
तुम्हारी कल्पना
बर्फ की तरह
पिघलती रही
सपनों की पहाडि़यों से,
निःशब्द
बहती रही
एक हिम नदी
मन के
इस छोर से उस छोर तक
और
धीमे-धीमे
भीगता रहा मन
सारी रात।
- दिनेश गौतम
अच्छा ! आपका काव्य संग्रह प्रकाशित है ? सारी रचनाएं छंदमुक्त हैं अथवा … ‘सपनों के हंस’ बहुत ख़ूबसूरत शीर्षक है … निश्चित रूप से संग्रहणीय होगा … बधाई !
…और कविता के क्या कहने रात तुम्हारी कल्पना बर्फ की तरह पिघलती रही … … …
8 comments:
Bahut khoob ... Yun hi bheegta rahe man unki swapnil kalpana se ... Man mein utarte shabd ...
♥
प्रियवर दिनेश गौतम जी
नमस्कार !
अच्छा ! आपका काव्य संग्रह प्रकाशित है ?
सारी रचनाएं छंदमुक्त हैं अथवा …
‘सपनों के हंस’ बहुत ख़ूबसूरत शीर्षक है … निश्चित रूप से संग्रहणीय होगा … बधाई !
…और कविता के क्या कहने
रात
तुम्हारी कल्पना
बर्फ की तरह
पिघलती रही … … …
…और
धीमे-धीमे
भीगता रहा मन
सारी रात
बहुत सुंदर !
शुभकामनाओं-मंगलकामनाओं सहित…
-राजेन्द्र स्वर्णकार
बहुत खूबसूरत ख्याल
सुंदर..
bahut badhiyaa |
वाह.................
रिसता रहा प्रेम...........
सुंदर बहुत सुंदर...............
सादर.
वाह ...... बहुत सुंदर रचना,..अच्छी प्रस्तुति
MY RECENT POST काव्यान्जलि ...: बेटी,,,,,
बहुत सुन्दर...
हार्दिक बधाई...
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