कुछ युवा साथियों के द्वारा लगातार मेरी प्रेम कविताओं को ब्लाग पर पोस्ट करने का आग्रह किया जा रहा है उनके लिए प्रस्तुत है मेरी यह ‘गीतिका’, आप भी आनंद लें।
सब कुछ मिला यहाँ पर मुझको, बिन माँगे यूँ अनायास ही
लेकिन मेरे पागल मन को, तेरा प्यार नहीं मिल पाया।
तेरे नयन की ‘कारा’ होती, हो जाता मन बंदी मेरा,
हाय कि मुझको ऐसा कोई, कारागार नहीं मिल पाया।
तेरे चरण चूमकर मेरा आँगन उपकृत हो जाता पर,
मेरे आँगन की मिट्टी को, यह उपहार नहीं मिल पाया।
पास खड़े थे हम - तुम दोनों, एक मौन था फिर भी लेकिन
मन की बात तुम्हें मैं कहता, वह अधिकार नहीं मिल पाया।
स्वप्न बेचारे रहे अधूरे- ‘मिट्टी के अधबने खिलौने’,
उनको तेरे सुघड़ हाथ से , रूपाकार नहीं मिल पाया।
रंग भरे इस जग ने सबको, बाहों में भर - भर कर भेंटा,
मैं शापित हूँ शायद मुझको, यह संसार नहीं मिल पाया।
- दिनेश गौतम
25 comments:
स्वप्न बेचारे रहे अधूरे- ‘मिट्टी के अधबने खिलौने’,
उनको तेरे सुघड़ हाथ से , रूपाकार नहीं मिल पाया।
तेरे चरण चूमकर मेरा आँगन उपकृत हो जाता पर,
मेरे आँगन की मिट्टी को, यह उपहार नहीं मिल पाया।
bahut sundar panktiyan
आभार ।
बढ़िया प्रस्तुति ।।
अच्छी प्रस्तुति दिनेश भाई जी...
सादर बधाई.
धन्यवाद वंदना जी, रविकर जी और संजय भाई!
भाव पुर्ण सुंदर और बहुत आच्छी रचना
तेरे चरण चूमकर मेरा आँगन उपकृत हो जाता पर,
मेरे आँगन की मिट्टी को, यह उपहार नहीं मिल पाया।bahut badhiyaa
bahut sundar bhavon ki prastuti .aabhar
तेरे चरण चूमकर मेरा आँगन उपकृत हो जाता पर,
मेरे आँगन की मिट्टी को, यह उपहार नहीं मिल पाया...
वाह ... प्रेम की पराकाष्ठा ... बहुत ही लाजवाब प्रस्तुति है प्रेम की ...
धन्यवाद संजय भास्कर जी,रश्मि प्रभा जी, शिखा कौशिक जी, और दिगंबर नासवा जी आपने मेरी कविता पसंद की, आभार!
तेरे चरण चूमकर मेरा आँगन उपकृत हो जाता पर,
मेरे आँगन की मिट्टी को, यह उपहार नहीं मिल पाया...
....pyar ka sundar izhar karti rachna.
धन्यवाद कविता जी।
धन्यवाद कविता जी।
धन्यवाद कविता जी।
भावपूर्ण सुंदर प्रस्तुति ।
पास खड़े थे हम - तुम दोनों, एक मौन था फिर भी लेकिन
मन की बात तुम्हें मैं कहता, वह अधिकार नहीं मिल पाया।
vah bahut hi sunder likha hai hai
badhai
rachana
thanks,udan.. &rachna ji
पास खड़े थे हम - तुम दोनों, एक मौन था फिर भी लेकिन
मन की बात तुम्हें मैं कहता, वह अधिकार नहीं मिल पाया। bahut komal.....sunder.....
धन्यवाद मृदुला जी, इसी तरह आते रहिए।
वाह!!!!
पास खड़े थे हम - तुम दोनों, एक मौन था फिर भी लेकिन
मन की बात तुम्हें मैं कहता, वह अधिकार नहीं मिल पाया।
बहुत सुंदर रचना...
बधाई.
अनु
धन्यवाद अनु जी, रचना आपने पसंद की। आपका आभारी हूँ।
पास खड़े थे हम - तुम दोनों, एक मौन था फिर भी लेकिन
मन की बात तुम्हें मैं कहता, वह अधिकार नहीं मिल पाया।
वाह!!!!!!बहुत सुंदर सार्थक रचना,अच्छी प्रस्तुति........
दिनेश जी,समर्थक बनगया हूँ,आप भी बने मुझे
खुशी होगी,...साथ ही इसी तरह स्नेह बनाए रखे.......
MY RECENT POST...काव्यान्जलि ...: यदि मै तुमसे कहूँ.....
सिद्धकलम रचनाकारों की बात ही कुछ और है !
हर शब्द कह रहा है कि मैं दिनेश की कलम से निकला हूं।
बहुत सुन्दर....
मनोभावों को बेहद खूबसूरती से पिरोया है आपने.......
हार्दिक बधाई।
प्रेम की भावुकता की जीवंत अभिव्यक्ति.. सुंदर और दिल को छूने वाले शब्दों में
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