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Saturday, 21 January 2012

ग़ज़ल...

दर्द के हाथों खुशी को बेच मत,
अपने होठों की हँसी को बेच मत।

क्या लगाएगा भला कीमत कोई,
मान- मर्यादा, खुदी को बेच मत।

बस नुमाइश के लिए बाज़ार में,
अपने तन की सादगी को बेच मत।

मौत की राहें न चुन अपने लिए,
प्यार की इस जिंदगी को बेच मत।

बस अँधेरा ही अँधेरा पाएगा,
इस तरह तू रौशनी को बेच मत।

बेमुरव्वत इस ज़माने के लिए,
अपनी आँखों की नमी को बेच मत।

आलिमों में नाम होगा एक दिन,
इल्म की इस तिश्नगी को बेच मत।

- दिनेश गौतम

5 comments:

डॉ. मोनिका शर्मा said...

क्या लगाएगा भला कीमत कोई,
मान- मर्यादा, खुदी को बेच मत।

Gahari Baat liye Panktiyan...

महेन्‍द्र वर्मा said...

आलिमों में नाम होगा एक दिन,
इल्म की इस तिश्नगी को बेच मत।

पूरी ग़ज़ल अच्छी है लेकिन इस शेर की बात ही कुछ और है।

JAY SINGH"GAGAN" said...

बेमुरव्वत इस ज़माने के लिए,
अपनी आँखों की नमी को बेच मत।


सुन्दर अभिव्यक्ति

dinesh gautam said...

thanks monika ji

dinesh gautam said...

dhanyawad ...