कलम मेरी हो जा तू सजनी
आज सिर्फ श्रृंगार लिखूँगा।
तेरा झूमर, तेरी पायल,
तेरे गले का हार लिखूँगा।
तेरा हँसना, तेरा रोना,
तेरा मिलना, तेरा खोना।
तेरा जूड़ा, तेरी कलाई,
तूने जो बातें बतियाईं,
उन पर सौ-सौ बार लिखूँगा।...
प्याले सी अँखियाँ कजरारी,
गजब नशीली देह तुम्हारी।
आँखें तुम्हें न पीने पातीं,
प्यास अधूरी फिर रह जाती
इन आँखों की गहराई में
भरा है कितना प्यार लिखूँगा।...
कोयल सी तानों पर तेरे,
देते ध्यान कान क्यूँ मेरे ,
साँसों का संगीत तुम्हारा,
कैसे लगता मुझको प्यारा
आज तुम्हारी हर धड़कन पर
हृदय के उद्गार लिखूँगा।...
कजरारी आँखें हैं स्वप्निल,
तेरे गालों पर सुंदर तिल,
तेरे रूप का कायल होके
मंत्रमुग्ध यह जगत विलोके
तेरे इसी रूप पर मैं भी
अपने आज विचार लिखूँगा।...
- दिनेश गौतम
16 comments:
भाई दिनेश जी,
आपने यह गीत काफी गहराई में डूबकर लिखा है, सृजन के भावुक पलों में, पूर्ण मनोयोग से। बधाई!
देह-केन्द्रित चिन्तन से आक्रान्त इस गीत में इतस्ततः शैल्पिक शैथिल्य को अनदेखा कर दिया जाये, तो इसे एक रससिक्त हृदय का सहज उच्छलन कहना उचित होगा।
श्रृंगार रस में पगी कविता है आपकी... सुंदर
यह मेरी एक पुरानी और प्रारंभिक रचना है फलतः शिल्पगत कच्चापन अवश्य है इसमें। इसे मैंने अपने प्रिय शिष्य और माय एफ एम के लोकप्रिय रेडियो जाॅकी आर जे द्रोण की विशेष माँग पर ब्लाग में डाल दिया है।
सुंदर शाब्दिक श्रृंगार लिए भाव ...... बेहतरीन पंक्तियाँ
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति....प्रेमरस में भीगी हुई ये पक्तियां सच में बहुत खूब है..
.
दिनेश गौतम जी
आज ही नहीं आप सदैव शृंगार लिखते रहें :)
…ताकि हमें इतनी सुंदर रचनाएं पढ़ने को मिलती रहें ।
आपके ब्लॉग की अन्य रचनाएं भी पढ़ कर आनंदित हुआ … आभार!
साथ ही,
स्वीकार करें मंगलकामनाएं आगामी होली तक के लिए …
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♥होली ऐसी खेलिए, प्रेम पाए विस्तार !♥
♥मरुथल मन में बह उठे… मृदु शीतल जल-धार !!♥
आपको सपरिवार
होली की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं !
- राजेन्द्र स्वर्णकार
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शृंगाररस से सरोबार रचना , सही में कलम को सजनी बनाकर लिखी बेहतरीन कविता .एक एक शब्द का भरपूर श्रृंगार
कर पक्तियों में पिरोया गया है . बहुत खूब
कलम मेरी भी हो जा तू
ख़त तुझसे सौ सौ बार लिखूंगी
अब तक जो न कह पाई थी
साजन को वो प्यार लिखूंगी .....:))
बहुत सुंदर रचना ......!!
.
:)
एक और शृंगार शिरोमणि का प्रकट होना सुखद है…
सर आप तो ऋंगार के महारथी हैं ....आपकी हर रचना 16 ऋगांर किए होती हैं। मैं झूठ सच कह रहा हूं .....इसलिए नहीं की आपका शिष्य इसलिए कोई मैं एक कविता प्रेमी हूं ....आपकी लेखनी ....प्रेम उसी तरह बरसती हैं जैसे ओस की बूंदे ....आप यूं ही लिखते रहें ....हम आप ऋगांर करना सीखते रहेंगे।
वाह!!!
बेहद सुन्दर रचना...प्रेम पगी..
सादर.
waah! bahut khub
सजनी के प्रेम में पगी कविता ...मन को भा गयी
bahut sundar premgeet
badhiya bhav abhivykti...
प्रभावशाली लिखते हो....
शुभकामनायें !
साँसों का संगीत तुम्हारा,
कैसे लगता मुझको प्यारा
आज तुम्हारी हर धड़कन पर
हृदय के उद्गार लिखूँगा।...
...बहुत खूब! लाज़वाब अहसास..
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