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Tuesday, 13 March 2012

ग़ज़ल

किस तरह से दब गए हैं स्वर यहाँ,
नोंच कर फेंके गए हैं पर यहाँ।

दाँत के नीचे दबेंगी उँगलियाँ,
है उगी सरसों हथेली पर यहाँ।

'टोपियाँ' कुछ खुश दिखीं इस बात पर,
कुछ 'किताबें' बन गईं अनुचर यहाँ।

धीमे-धीमे भीगता है मन कहीं,
रिस रही है प्यार की गागर यहाँ।

मेमना भारी न पड़ जाए कहीं,
शेर को अब लग रहा है डर यहाँ।

एक दिन गूँगी ज़ुबानें गाएँगी,
बात फैली है यही घर-घर यहाँ।

तन रही हैं धीरे -धीरे मुट्ठियाँ,
मुट्ठियों में बंद हैं पत्थर यहाँ

दिनेश गौतम

28 comments:

ANULATA RAJ NAIR said...

बहुत खूबसूरत गज़ल..........

महेन्‍द्र वर्मा said...

किस तरह से दब गए हैं स्वर यहाँ,
नोंच कर फेंके गए हैं पर यहाँ।

मतले के इस एक शेर के लिए बार-बार वाह-वाह !

NKC said...

aapki panktiyon me bhawnao ka saagar basa hai, bahut khub likha hai aapne, bus ko dil ko chhu si gayi...

Amrita Tanmay said...

कमाल का बिम्ब ..रोक सा लेता है..

रविकर said...

आप आयें --
मेहनत सफल |

शुक्रवारीय चर्चा मंच
charchamanch.blogspot.com

word varification ke karan tippani nahin kar pata hun
kyonki nahin padh pata hun

लोकेन्द्र सिंह said...

बहुत सुन्दर....

वाणी गीत said...

तन रही हैं धीरे -धीरे मुट्ठियाँ,
मुट्ठियों में बंद हैं पत्थर यहाँ!
छिपे आक्रोश को सुन्दर शब्द दिए !

udaya veer singh said...

तन रही हैं धीरे -धीरे मुट्ठियाँ,
मुट्ठियों में बंद हैं पत्थर यहाँ
मुखर अभिव्यक्ति ,मन का रोष सार्थकता के प्रति उद्वेलित है ... बहुत खूब बधाईयाँ जी /

avanti singh said...

bahut sundar gazal hai ,pahli baar blog par aana hua ,khushi huee aakr :)

सदा said...

एक दिन गूँगी ज़ुबानें गाएँगी,
बात फैली है यही घर-घर यहाँ।

तन रही हैं धीरे -धीरे मुट्ठियाँ,
मुट्ठियों में बंद हैं पत्थर यहाँ
वाह ...बहुत ही बढिया।

virendra sharma said...

तांत्रिक दर्द की सहज अभिव्यक्ति .

virendra sharma said...

लोक तांत्रिक दर्द की सहज अभिव्यक्ति .

Mamta Bajpai said...

मेमना भारी न पड़ जाए कहीं,
शेर को अब लग रहा है डर यहाँ। baht badiya

मेरा मन पंछी सा said...

bahut badhiya gajal...
har sher lajavab hai:-)

Rajput said...

मेमना भारी न पड़ जाए कहीं,
शेर को अब लग रहा है डर यहाँ।
बहुत ही बढिया ।

Rajput said...

दिनेश जी आप से गुजारिश है की वर्ड वेरिफिकेशन को डिसेबल रखें ताकि व्यर्थ के झंझंट से बचा जा सके , दूसरा आपकी प्रोफाइल में एक ही नाम के दो ब्लॉग है पहले में कोई पोस्ट नहीं है इसलिए उसको डिस्प्ले लिस्ट म न रखें ताकि आगंतुकों को असुविधा न हो

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार said...





आदरणीय दिनेश गौतम जी
सस्नेहाभिवादन !

बहुत अच्छी ग़ज़ल कही है आपने -
टोपियाँ' कुछ खुश दिखीं इस बात पर,
कुछ 'किताबें' बन गईं अनुचर यहाँ।

मेमना भारी न पड़ जाए कहीं,
शेर को अब लग रहा है डर यहाँ।

एक दिन गूँगी ज़ुबानें गाएँगी,
बात फैली है यही घर-घर यहाँ।

तन रही हैं धीरे -धीरे मुट्ठियाँ,
मुट्ठियों में बंद हैं पत्थर यहाँ

बढ़िया अश्'आर हैं … मुबारकबाद !

मंगलकामनाओं सहित…

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') said...

वाह! वाह! वाह! दिनेश भाई!
क्या शानदार ग़ज़ल कही है.... बहुत खूब...
सादर बधाई स्वीकारें.....

दीपिका रानी said...

बेहद सुंदर और सधी हुई ग़ज़ल लगी। प्रासंगिक भी

raadheji said...

wwah! bahut khub,main ne aaj hi blog bnaya hai ,aap saadar aamntrit hai

Sonroopa Vishal said...

वर्तमान विसंगतियों को शब्दों के कटाक्ष से चित्रित कर है हमारे सामने ......... दिनेश जी बहुत बहुत बधाई सच्ची गजल के लिए .......

Vandana Ramasingh said...

किस तरह से दब गए हैं स्वर यहाँ,
नोंच कर फेंके गए हैं पर यहाँ।

bahut badhiya gazal..vah

Kunwar Kusumesh said...

मेमना भारी न पड़ जाए कहीं,
शेर को अब लग रहा है डर यहाँ.....

वाह,ग़ज़ब का शेर है.
पहली बार आपको पढ़ा,अच्छी लगी आपकी ग़ज़ल,दिनेश जी.

रश्मि प्रभा... said...

मेमना भारी न पड़ जाए कहीं,
शेर को अब लग रहा है डर यहाँ।... अन्याय की हद ने मेमने को है सजग बनाया , उसके स्वाभिमान की चाल उठे तो शेर डरेगा ही

नीरज गोस्वामी said...

दाँत के नीचे दबेंगी उँगलियाँ,
है उगी सरसों हथेली पर यहाँ

Subhan Allah...Behtariin

Neeraj

हरकीरत ' हीर' said...

वाह...वाह....बहुत खूब दिनेश जी ...
बिलकुल नए अंदाज़ में शेर कहे आपने .....

मेमना भारी न पड़ जाए कहीं,
शेर को अब लग रहा है डर यहाँ।

काश ऐसा हो ....:))

एक दिन गूँगी ज़ुबानें गाएँगी,
बात फैली है यही घर-घर यहाँ।

सच....?

Unknown said...

बहुत सुन्दर रचना ...

बधाइयाँ

कभी मेरे ब्लॉग पर भी तशरीफ लाइए...

shikha varshney said...

तन रही हैं धीरे -धीरे मुट्ठियाँ,
मुट्ठियों में बंद हैं पत्थर यहाँ
वाह क्या खूब कहा है.हर शेर लाजबाब.