उतरा है धरती पर फागुन अभिराम,
कोमल है दोपहरी, शीतल है शाम,
लहरों पर तैर रहे, झरे हुए पात,
नदिया को भा गई है मौसम की बात,
बगिया ने सौंपे हैं नए-नए फूल,
उड़-उड़ है नाच रही राहों पर धूल,
हवा लिख रही है आज पत्तों पर नाम...।
टेसू पर नाच रही प्यारी सी अरुणाई,
कोयल की कूकों से गूँजी है अमराई,
लाज भरी कलियों ने झाँका है घूँघट से,
उभरी है कोई हँसी, कहीं किसी पनघट से
सूरज लो निकला उस फुनगी को थाम...।
गुनगुनाते भँवरे अब निकले हैं टोली में,
रस भर-भर आया है चिडि़यों की बोली में,
चाँदी ज्यों बहती है , हँसते से झरनों में,
चमक रहे हैं पत्ते सूरज की किरनों में,
हरियाई है इमली, बौराया आम...।
शाखों में पंछी अब चहक-चहक उठते हैं,
उपवन के कोने अब महक-महक उठते हैं,
मौसम के मंतर से तन-मन फगुनाया है,
बहक-बहक जाएँ कदम क्या खुमार छाया है,
छलक-छलक जाते हैं हाथों से जाम...।
- दिनेश गौतम
2 comments:
बहुत सुन्दर गीत है ..और तन-मन फगुनाया है .. का तो जवाब नहीं
टेसू पर नाच रही प्यारी सी अरुणाई,
कोयल की कूकों से गूँजी है अमराई,
लाज भरी कलियों ने झाँका है घूँघट से,
उभरी है कोई हँसी, कहीं किसी पनघट से
सूरज लो निकला उस फुनगी को थाम...।
क्या बात है...!
यह गीत तो बासंती चित्रों का अलबम लग रहा है।
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