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Tuesday, 7 February 2012

फागुनी दोहे

फागुन का आना हुआ, गए सभी दुख भूल ,
कुंजन कूकी कोकिला, उपवन महके फूल।

चंदा ने चालें चली, फेंका ऐसा पाश,
बँधी चाँदनी चल पड़ी, मौन रहा आकाश।

क्यारी-क्यारी फैल गई मस्तानी सी गंध,
फागुन पढ़ने आ गया मादकता के छंद।

रंग से भीगी देह ने खोला है ये राज,
टहनी ज्यों कचनार की भीग गई हो आज।


चाौपालों में गूँजते लगते ऐसे फाग,
छेड़ दिया ज्यों काम ने कोई मादक राग।

दावानल सा देखकर भीत हुआ आकाश
जब टेसू पर उतर गया जंगल में मधुमास।
- दिनेश गौतम

2 comments:

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया said...

बेहतरीन बहुत सुंदर दोहे ,लाजबाब प्रस्तुति,....

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Saras said...

बहुत ही सुन्दर लिखा है आपने ...हर छंद दूसरे से बेहतर ....पता नहीं हमसे कैसे छूट गयी यह रचना .....