लौट आया फिर से लो मदमाता फागुन,
भौंरों की गुनगुन में कुछ गाता फागुन।
फूलों से लदी हुई शाख मुस्कुराती है,
हवा के झकोरों से झूम-झूम जाती है।
कलियों की पंखुरियाँ हौले से खुलती हैं,
शबनम की कुछ बूँदें पत्तों पर ढुलती हैं।
बूँदों में शबनम की, कुछ गाता फागुन ...।
नदिया की कल-कल में, एक नया गीत है,
झरनों के झर-झर में कोई संगीत है।
इक मीठी तान छेड़ कोयल भी गाती है,
मौसम के गीतों को गाकर सुनाती है,
वन में यूँ सुर-मेले सजवाता फागुन...।
झूमते पलाशों पर मस्ती सी छाई है,
उनके खुश होने की जैसे रुत आई है।
टेसू की टहनी पर आग इक मचलती है,
लगता है फुनगी हर धू-धू कर जलती है।
फूलों में अंगारे भर जाता फागुन...।
काँधे पर खुशबू को लिए हवा बहती है,
रस भीगी बातें वह कानों में कहती है।
तन-मन पर इक खुमार हावी हो जाता है,
मीठी सी एक कसक मन में बो जाता है।
मन के हर कोने को महकाता फागुन ...।
अलसायी गोरी का यौवन मतवाला है,
भरी हुई नस-नस में ज्यों कोई हाला है।
कचनारी देह कोई जादू जगाती है,
नयनों को आमंत्रण बाँट-बाँट जाती है।
गोरी के यौवन में इतराता फागुन...।
- दिनेश गौतम
5 comments:
SUNDAR RACHANA.
sundar-pyara-dulara geet...aanad aa gaya..
Last Stanza of Poem is to Good Sir.
bahut badiya faguni rang se saja geet..
सुंदर और मजेदार गीत
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