गीत -
गरज रहे हैं, श्यामल से घन
फिर से सावन आया
मोर नाचते पंख पसारे
मुग्ध मोरनी तकती,
कूक-कूक वन को गुंजाती,
कोकिल कभी न थकती।
पुलकित है जैसे सारा वन
फिर से सावन आया।
गरज-गरजकर घुमड़ें बादल,
प्रिया हृदय भय भरते
देख तड़ित की कौंध प्रिया के
रह-रह प्राण सिहरते।
और गात में होता कंपन
फिर से सावन आया।
बूँदों की छमछम में जैसे
प्रकृति मगन हो नाचे
मेघों की पाती को धरती
सकुच-सकुच कर बाँचे
धन्य-धरा का सारा जीवन
फिर से सावन आया।
राग मेघ मल्हार सुनाए
कजरी कोई गाए,
बूँदों की छमछम से प्रेरित
कोई नाच दिखाए।
बना हुआ है आज इंद्र मन
फिर से सावन आया
खुश हैं कृषक, खेत भी खुश हैं,
खुश है यह जग सारा।
वरदानी इस ऋतु का जग को
सचमुच बड़ा सहारा।
देने जड़-चेतन को जीवन
फिर से सावन आया।
- दिनेश गौतम