सुनो !
मेरी साँसों में
घुल गया है
नाम तुम्हारा,
मेरी धड़कनों में
चस्पा हैं
तुम्हारे नाम के
एक-एक अक्षर।
हृदय में गूँज रही है
अब भी
तुम्हारी नाम धुन
निरंतर,
अविरल,
अबाध।
हर धड़कन के साथ
और भी स्पष्ट निकलती है
तुम्हारे नाम की ध्वनि
स्मृतियों के जल महल में
रह-रह कर चमकती हैं
तुम्हारी छवियाँ।
तुम्हारा प्रेम
कभी संदेह था
साथ मेरे,
साकार थीं तुम
मेरे साथ
प्रेम के भीतर।
अब
देह नहीं है तुम्हारी।
मेरे साथ,
देह तो निकलकर चली गई
कहीं और।
मेरे पास बच गया है
केवल प्रेम।
सात्विक,
निर्गुण,
निराकार।
पहले से कहीं उजला,
पहले से कहीं अधिक निर्मल
और बहुत पावन।
सुनो !
यह निराकार बोलता है
मेरे भीतर
सातों सुर में
बोलते हैं अब भी
तुम्हारे नाम के
ढाई अक्षर
मेरी हर धड़कन में।
दिनेश गौतम
मेरी साँसों में
घुल गया है
नाम तुम्हारा,
मेरी धड़कनों में
चस्पा हैं
तुम्हारे नाम के
एक-एक अक्षर।
हृदय में गूँज रही है
अब भी
तुम्हारी नाम धुन
निरंतर,
अविरल,
अबाध।
हर धड़कन के साथ
और भी स्पष्ट निकलती है
तुम्हारे नाम की ध्वनि
स्मृतियों के जल महल में
रह-रह कर चमकती हैं
तुम्हारी छवियाँ।
तुम्हारा प्रेम
कभी संदेह था
साथ मेरे,
साकार थीं तुम
मेरे साथ
प्रेम के भीतर।
अब
देह नहीं है तुम्हारी।
मेरे साथ,
देह तो निकलकर चली गई
कहीं और।
मेरे पास बच गया है
केवल प्रेम।
सात्विक,
निर्गुण,
निराकार।
पहले से कहीं उजला,
पहले से कहीं अधिक निर्मल
और बहुत पावन।
सुनो !
यह निराकार बोलता है
मेरे भीतर
सातों सुर में
बोलते हैं अब भी
तुम्हारे नाम के
ढाई अक्षर
मेरी हर धड़कन में।
दिनेश गौतम