इधर घोटाला है, देखिए उधर घोटाला है,
राजनीति के दलदल में सबका मुँह काला है।
बातें हैं आदर्शों की पर करनी बिल्कुल उल्टी,
उनका यह अंदाज़ सभी का देखा- भाला है।
जो आता है फँस जाता है, स्वारथ के धागे में,
राजनीति है या कोई मकड़ी का जाला है।
पंचम सुर में झूठा गाए, बढ़चढ़कर इतराए,
सच के मुँह पर लगा हुआ अब तक इक ताला है।
गाँधी तू भी रोता होगा देश की इस हालत पर,
आखिर इसके सपनों को तूने भी पाला है।
सच कहने की सज़ा अगर दो, हँसकर मैं सह लूँगा
युग का हर सुकरात ज़हर का पीता प्याला है।
- दिनेश गौतम