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Sunday 15 March 2020

सूख गया प्रेम वृक्ष

दो हज़ार पंद्रह से मेरा ब्लॉग तकनीकी कारणों से बंद पड़ा था। आज मेरे बेटे प्रणय ने आख़िर वह समस्या हल कर दी और यह बताते हुए हर्ष हो रहा है कि मैंने फिर से उसमें अपनी कविताएँ पोस्ट करना प्रारंभ कर दिया है। शुरुआत एक गीत से - आप सबकी प्रतिक्रियाओं की प्रतीक्षा रहेगी।



सूख गया प्रेम वृक्ष, पत्र सब झरे
सींच रहे ठूँठ को, नयन जल भरे...

जाने क्यों दीपों के भाग लिखे अंधड़ ही
और नए उपवन की, किस्मत में पतझड़ ही
मधुमासी स्वप्न सभी, रह गए धरे.......

लुटी हुई पूँजी है, भोले विश्वासों की
जीवन अब शेष कथा श्वासों -निश्वासों की
कौन यहाँ अमृत की, कामना करे....

नीरवता पसरी है मीलों तक अंतर में,
खिले हुए नागफनी प्राणों के बंजर में
गीतों के निर्झर भी सूख सब मरे.....

नदी के किनारों से, बिगड़े संबंध यहाँ
लहरों की सुने कौन, बहरे तटबंध यहाँ
पत्थर की नौकाएँ, कौन फिर वरे..
              -  दिनेश गौतम

7 comments:

Rupendra raj said...

बेहतरीन गीत आदरणीय.
पत्थर की नौकाएं अप्रतिम बिम्ब बना.

Saras said...

सुंदर गीत आदरणीय..!

dinesh gautam said...

धन्यवाद सरस जी आभार आपका।

dinesh gautam said...

धन्यवाद रूपेंद्र जी। इस अंजुमन में आपको आना है बार बार। हमको , हमारे ब्लॉग को पहचान लीजिए।

Rupendra raj said...

🙏💐🙏

mridula pradhan said...

स्वागत है ..

Zee Talwara said...

nice line, thanks for sharing, Free me Download krein: Mahadev Photo