दो हज़ार पंद्रह से मेरा ब्लॉग तकनीकी कारणों से बंद पड़ा था। आज मेरे बेटे प्रणय ने आख़िर वह समस्या हल कर दी और यह बताते हुए हर्ष हो रहा है कि मैंने फिर से उसमें अपनी कविताएँ पोस्ट करना प्रारंभ कर दिया है। शुरुआत एक गीत से - आप सबकी प्रतिक्रियाओं की प्रतीक्षा रहेगी।
सूख गया प्रेम वृक्ष, पत्र सब झरे
सींच रहे ठूँठ को, नयन जल भरे...
जाने क्यों दीपों के भाग लिखे अंधड़ ही
और नए उपवन की, किस्मत में पतझड़ ही
मधुमासी स्वप्न सभी, रह गए धरे.......
लुटी हुई पूँजी है, भोले विश्वासों की
जीवन अब शेष कथा श्वासों -निश्वासों की
कौन यहाँ अमृत की, कामना करे....
नीरवता पसरी है मीलों तक अंतर में,
खिले हुए नागफनी प्राणों के बंजर में
गीतों के निर्झर भी सूख सब मरे.....
नदी के किनारों से, बिगड़े संबंध यहाँ
लहरों की सुने कौन, बहरे तटबंध यहाँ
पत्थर की नौकाएँ, कौन फिर वरे..
- दिनेश गौतम
सूख गया प्रेम वृक्ष, पत्र सब झरे
सींच रहे ठूँठ को, नयन जल भरे...
जाने क्यों दीपों के भाग लिखे अंधड़ ही
और नए उपवन की, किस्मत में पतझड़ ही
मधुमासी स्वप्न सभी, रह गए धरे.......
लुटी हुई पूँजी है, भोले विश्वासों की
जीवन अब शेष कथा श्वासों -निश्वासों की
कौन यहाँ अमृत की, कामना करे....
नीरवता पसरी है मीलों तक अंतर में,
खिले हुए नागफनी प्राणों के बंजर में
गीतों के निर्झर भी सूख सब मरे.....
नदी के किनारों से, बिगड़े संबंध यहाँ
लहरों की सुने कौन, बहरे तटबंध यहाँ
पत्थर की नौकाएँ, कौन फिर वरे..
- दिनेश गौतम
7 comments:
बेहतरीन गीत आदरणीय.
पत्थर की नौकाएं अप्रतिम बिम्ब बना.
सुंदर गीत आदरणीय..!
धन्यवाद सरस जी आभार आपका।
धन्यवाद रूपेंद्र जी। इस अंजुमन में आपको आना है बार बार। हमको , हमारे ब्लॉग को पहचान लीजिए।
🙏💐🙏
स्वागत है ..
nice line, thanks for sharing, Free me Download krein: Mahadev Photo
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