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Monday 9 September 2013

उनकी क्या है बात

उनकी क्या है बात, वे स्वर्णिम शिखर बनकर रहेंगे,
हम तो हैं बेबस बेचारे, नींव के पत्थर रहेंगे।

उनकी आँखें की चमक हीरों से बढ़ती जाएगी,
और अपने ये नयन तो, अश्रुओं से तर रहेंगे।

तितलियों से बोल दो, इस बाग में न यूँ फिरें,
एक दिन वरना उन्हीं के, कुछ नुचे से पर रहेंगे।

लाख रोकें हम शलभ को दीप की लौ पर न जा,
प्यार पागलपन है ऐसा, वे तो बस जलकर रहेंगे।

नफरतों की वो इमारत अब ढहा दी जाएगी,
इस नगर में तो हमारे, प्यार के ही घर रहेंगे।

देखना तुम जुल्म के आगे झुकी सब गर्दनें,
एक मेरा, इक तुम्हारा दो ही ऊँचे सर रहेंगे।

ये अजब है बात, जिनको चाहिए न हों वहाँ,
वे ही लेकिन उस जगह पर, देखना अक्सर रहेंगे।

खो चुके हैं जो चमक, वे दिख रहे बाज़ार में,
पर असल में हैं जो मोती, सीप के अंदर रहेंगे।
- दिनेश गौतम

11 comments:

ANULATA RAJ NAIR said...

वाह.....
देखना तुम जुल्म के आगे झुकी सब गर्दनें,
एक मेरा, इक तुम्हारा दो ही ऊँचे सर रहेंगे।
बेहतरीन ग़ज़ल....

अनु

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया said...

खो चुके हैं जो चमक, वे दिख रहे बाज़ार में,
पर असल में हैं जो मोती,सीप के अंदर रहेंगे।

वाह वाह !!! क्या बात है बहुत सुंदर गजल,,
गणेश चतुर्थी की हार्दिक शुभकामनाए !

RECENT POST : समझ में आया बापू .

दिगम्बर नासवा said...

तितलियों से बोल दो, इस बाग में न यूँ फिरें,
एक दिन वरना उन्हीं के, कुछ नुचे से पर रहेंगे।

बहुत ही लाजवाब शेर ... उम्दा भावपूर्ण गज़ल है ...

रविकर said...

उत्तम-
बधाई स्वीकारें आदरणीय-
गणेश चतुर्थी की शुभकामनायें-

Vandana Ramasingh said...

खो चुके हैं जो चमक, वे दिख रहे बाज़ार में,
पर असल में हैं जो मोती, सीप के अंदर रहेंगे।
देखना तुम जुल्म के आगे झुकी सब गर्दनें,
एक मेरा, इक तुम्हारा दो ही ऊँचे सर रहेंगे।

बहुत बढ़िया ग़ज़ल

dinesh gautam said...

धन्यवाद अनु जी,धीरेन्द्र सिंह भदौरिया जी,दिगंबर नासवा जी, रविकर जी, तथा वंदना जी, 10 माह के बाद मेरी वापसी अपने ही ब्लाग पर हुई है। तकनीकी गड़बडि़यों के चलते मैं अपनी नई रचनाएँ पोस्ट नहीं कर पा रहा था। अचानक दूर हुई इस समस्या ने मेरा उत्साह फिर वापस ला दिया। उम्मीद है अब नियमित रूप से हम मिलते रहेंगे।

डॉ. मोनिका शर्मा said...

बहुत सुंदर गजल....

dinesh gautam said...

धन्यवाद मोनिका जी, इसी तरह आती रहिए।

Unknown said...

तितलियों से बोल दो, इस बाग में न यूँ फिरें,
एक दिन वरना उन्हीं के, कुछ नुचे से पर रहेंगे।

बेहतरीन

Rachana said...

खो चुके हैं जो चमक, वे दिख रहे बाज़ार में,
पर असल में हैं जो मोती, सीप के अंदर रहेंगे।
sahi kaha aapne bahut khoob
rachana

Rupendra raj said...

देखना तुम जुल्म के आगे झुकी सब गर्दनें,
एक मेरा, इक तुम्हारा दो ही ऊँचे सर रहेंगे।

वाहहह!!

बहुत ही सुंदर गीतिका.