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Sunday, 20 May 2012

रात...


कैसी ये मतवाली रात,
चाँद सितारों वाली रात।

कितने राज़ छुपाए बैठी,
बनकर भोली-भाली रात।

कभी लगी ये अमृत जैसी,
कभी ज़हर की प्याली रात।

बिलख रहे हैं भूखे बच्चे,
माँ की खातिर काली रात।

बँगला-गाड़ी पास है जिनके,
उनके लिए दीवाली रात।

लहू जिगर का माँगे हमसे,
बनकर एक सवाली रात।

फुटपाथों पर जब हम सोए,
लगी हमें भी गाली रात।

मत पूछो दिन कैसे बीता,
कैसे, कहाँ बिता ली रात?

दुख ने दिन को गोद ले लिया,
पीड़ाओं ने पाली रात।

दिवस बनाया पर न भरा मन,
‘उसने’ खूब बना ली रात।

                                    - दिनेश गौतम

9 comments:

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया said...

वाह ,,,, बहुत सुंदर रचना,,,

RECENT POST काव्यान्जलि ...: किताबें,कुछ कहना चाहती है,....

दीपिका रानी said...

sundar geet...

नीरज गोस्वामी said...

दुख ने दिन को गोद ले लिया,
पीड़ाओं ने पाली रात।

सुभान अल्लाह...बहुत खूब

नीरज

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') said...

अद्भुत... बहुत खुबसूरत...
सादर बधाई.

Saras said...

बिलख रहे हैं भूखे बच्चे,
माँ की खातिर काली रात।
... भावपूर्ण अभिव्यक्ति

dinesh gautam said...

धन्यवाद धीरेन्द्र जी,, दीपिका जी, नीरज गोस्वामी जी, संजय जी, और सरस जी। आपके पधारने का आभार । शीघ्र ही आप सब की नई पोस्ट देखना चाहता हूँ।

dinesh gautam said...
This comment has been removed by the author.
दिगम्बर नासवा said...

Bahut khoob Gautam Ji .... Chodti abhar ki lajawab gazal .. Matle ka sher hi poori gazal ki sundarta bakhaan kar deta hai ...

Darshan Darvesh said...

सादी और भावपूर्त |