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Sunday 2 September 2012

बेलूर...

(विगत दिनों अपने कर्नाटक प्रवास के दौरान मुझे ऐतिहासिक स्थल ‘बेलूर‘ के ‘चन्नकेशवा’ मंदिर जाने का अवसर लगा। होयसल सम्राट विष्णुवर्धन द्वारा निर्मित इस मंदिर में अपूर्व सुंदरी रानी शांतला (जो प्रसिद्ध नृत्यांगना थी) तथा अन्य सुंदर नर्तकियों की जीवंत प्रतिमाएं मन को मोह लेती हैं। मंदिर पर लिखी मेरी एक कविता आपके लिए प्रस्तुत है।)

वर्तमान के वक्ष पर
अतीत की धड़कन है बेलूर,
विलक्षण हो तुम
चन
्नकेशवा !

अतीत की
सुनहरी स्मृतियों के सहारे
उतर आते हो तुम
आँखों के रास्ते
मन की गहराइयों तक...

सदियों पुरानी
दीवारों पर
जड़ी हुई हैं
प्रतिमाएँ,
जैसे मार दिया हो मंतर
किसी जादूगर ने
और नृत्यांगनाएँ
बदल गई हों
प्रस्तर-प्रतिमाओं में।

अतीत की सीढि़यों पर
उतरते चले जाते हैं हम,
आँखों में उतर आती है
अपूर्व सुंदरी
रानी ‘शांतला’।

बजने लगते हैं घुंघरू,
मृदंग और वीणा,
शुरू हो जाता है
नृत्य-गान।
प्रांगण बदल जाता है
नृत्यशाला में।

हवाओं में
घुलने लगता है
सम्मोहन,
धड़कने लगते हैं
जाने कितने
विष्णुवर्धनों के हृदय।

नृत्यलीन है शांतला
नाच रही हो जैसे
स्वयं क्षणप्रभा,
कौंध रही है आँखों में
शांतला की द्युति।

देह का भूगोल
बढ़ा देता है ताप,
गोलाइयों, वक्रों
और
ढलानों से होकर
तय करने लगते हैं लोग
भूगोल से ज्यामिति तक की दूरियाँ
त्रिभंगी मुद्राएँ
सिखाती हैं
ज्यामिति के पाठ।
कई कोण बन रहे हैं
देह भंगिमाओं से।

इधर...
गुरुत्व का पाठ पढ़ाते
बिना किसी सहारे के खड़े
स्तंभ के पास खड़े हैं लोग
चकित है विज्ञान।

छूट जाता है सहसा
किसी सुंदरी के हाथ से दर्पण
उड़ जाता है
किसी शुकधारिणी के हाथों से शुक,
जब तन जाती हैं
किसी कमान की तरह
शांतला की भौंहें,
ठगे हुए से
रह जाते हैं सभी।

रूपगर्विता शांतला का
भृकुटि-विलास
ढहा देता है
जाने कितने विष्णुवर्धनों के हृदय।
गर्वान्नत भौंहें
चुनौतियाँ देती हैं
सौंदर्य के
सारे प्रतिमानों को।
शांतला की केशराशि में
उलझ कर रह जाते हैं
जाने कितने
सौण्दर्योपासक।

सुनो शांतला!
क्या पढ़े कोई
चन्नकेशवा में आकर?
भूगोल, इतिहास, विज्ञान
या सौण्दर्यशास्त्र ?
अप्रतिम हो तुम शांतला!
और
अद्भुत हो तुम
चन्नकेशवा!
सचमुच अद्भुत !!!
- दिनेश गौतम.

11 comments:

ANULATA RAJ NAIR said...

अहा!!!
अद्भुत....
कहीं पीछे खीच ले गयी आपकी रचना....
पूरा दृश्य आँखों के समक्ष उतर आया...

सुन्दर!!!

अनु

Rachana said...

kitna sunder likha hai bina vahan ghume hi sab dekh liya
badhai
rachana

दिगम्बर नासवा said...

Bahut lajawab ... Apki lekhni se sakshat darshan ho Gaye ...

मेरा मन पंछी सा said...

मंदिर की सुन्दरता को रचना में
बहुत सुन्दरता से व्यक्त किया है..
बहुत सुन्दर रचना..
:-)

dinesh gautam said...

धन्यवाद अनु जी, रचना जी, दिगंबर नासवा जी, और रीना जी, आपकी टिप्पणियाँ इतने दिनों के बाद अपने ब्लाग पर देखकर बहुत सुखद अनुभूति हुई । सचमुच आभारी हूँ।

वाणी गीत said...

रूपगर्विता शांताला और विष्णुवर्धन की सौंदर्योपासना मुखर है पूरी कविता में शब्द चित्र सी !
अनुपम कृति !

dinesh gautam said...

धन्यवाद वाणी जी।

dinesh gautam said...
This comment has been removed by the author.
मन्टू कुमार said...

बहुत खूब...

S.N SHUKLA said...

सुन्दर और सार्थक सृजन, बधाई.

कृपया मेरे ब्लॉग" meri kavitayen " की नवीनतम पोस्ट पर पधारकर अपना स्नेह प्रदान करें, आभारी होऊंगा .

Rupendra raj said...

बहुत ही सुंदर वर्णन, अप्रतिम सौंदर्य का बेहतरीन संप्रेषण है आपकी कविता में.
वाहहहह!!!