ताल-तलैया फिर भरे, नदियों में है बाढ़,
मेंढक टर्राने लगे, फिर आया आषाढ़।
पत्ते- पत्ते धुल गए,वन की है क्या बात,
वर्षा आकर दे गई, एक नई सौगात।
बौराए बादल फिरें, नभ के नापें छोर,
धरती से आकाश तक, गर्जन का ही शोर।
इस ऋतु ने तो बदल दिया, धरती का भूगोल,,
थल बदला जल में यहाँ, नभ का रूप न बोल।
‘कजरी’, ‘झूला’, सावनी, और ‘मेघ मल्हार’,
गाने के दिन आ गए, फिर से पड़ी फुहार।
काले- काले मेघ का लगता ऐसा वेश,
जैसे गोरी फिर रही, खोले श्यामल केश।
मेघ मचाने लग गए, इस पर खूब बवाल,
‘‘रिमझिम बूँदों ने छुए, क्यूँ फूलों के गाल’’।
टूटी बिजली क्रोध में, धरती पर कल शाम,
‘‘बहुत सताया ग्रीष्म में, अब भुगतो अंजाम’’।
रंगमंच में बदल गया, आषाढ़ी आकाश,
बिजली ,बादल ,बूँद को, मिली भूमिका खास।
टपक-टपक कर झोंपड़ी, हुई रात हलकान,
महल ऊँघते ही रहे, बारिश से अनजान।
गिरें न दीवारें कहीं, ढहे न कोई मकान,
इस वर्षा में निर्धन की, रक्षा कर भगवान !
- दिनेश गौतम
13 comments:
पत्ते- पत्ते धुल गए,वन की है क्या बात,
वर्षा आकर दे गई, एक नई सौगात ...
स्वागत है वर्षा की इस सौगात का ... नई खुशियां तो ले के आई है ... ठंडी फुहार लाइ है ... अच्छे दोहे भी साथ लाइ है ...
खुबसूरत दोहे आदरणीय दिनेश जी,
बारिश बादल में हुआ, भीगा भीगा भोर.
हरियाली ले आ गया, अद्भुत नया अंजोर.
सादर.
धन्यवाद दिगंबर नासवां जी, और संजय भाई!
खुबसूरत ।
बधाई ।।
टपक-टपक कर झोंपड़ी, हुई रात हलकान,
महल ऊँघते ही रहे, बारिश से अनजान।
बहुत उम्दा अभिव्यक्ति,,,सुंदर दोहे ,,,
MY RECENT POST...:चाय....
दिल्ली की सूखी गरमी में आपके वर्षा के दोहे थोड़ी ठंडक तो दे रहे हैं.. उम्मीद है जल्द ही वर्षा देवी यहां भी मेहरबान हों..
वर्षा ऋतु का स्वागत इतने सुन्दर दोहों से... सचमुच पत्ते - पत्ते धुल गए... सब कुछ नया-नया सा लगने लगा...
एक से बढ़कर एक दोहे ....सारगर्भित अर्थपूर्ण ...!
धन्यवाद संध्या जी, केवल राम जी आपने मेरी रचना पसंद की ।
दीपिका जी, गर्मी तो यहाँ भी बहुत पड़ रही है। बादल आते हैं और बस मुँह दिखा कर लौट जाते हैं मुझे तो अब ऐसा लग रहा है कि बादलों की निष्ठुरता पर कोई गीत लिखूँ पर अभी तो आपकी तरह वर्षा के दोहों से काम चलाना पड़ेगा। मेरी रचना पसंद करने के लिए धन्यवाद!
सुन्दर...बहुत सुन्दर दोहे...
अनु
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