Total Pageviews

Sunday, 10 June 2012

तुम्हारे बदल जाने के बाद...


तब
जब कागज़ पर
उतर नहीं सका था कुछ,
मैने हाथों में
थाम ली थी बाँसुरी
और
देर तक
घोलता रहा था
दिल का दर्द
हवाओं में।

तुम्हारे
बदल जाने का
गीत था वह।
मेरे जज़्बात
तार-तार होकर
उड़ने लगे थे फि़ज़ाओं में
और पूरे माहौल में
एक खामोश ग़मगीनी छा गई थी।
जाने कब तक
जेठ की नदिया सी
दो पतली धारें
मेरी आँखों की कोरों से निकल
उतरती रही थीं नीचे।
चाँदनी
भीगकर भारी हो चली थी,
और
रात की सफेदी में
एक कि़स्म का
बहाव था धीमा-धीमा
पर मन के भीतर
उतना ही ठहराव,
जड़वत था सब कुछ
मन के भीतर ।
न कहीं कंपन,
न कोई हलचल
पर फिर भी
इर्द गिर्द  उसके
जाने क्योँ
मंडराती रही थीं
भावनाएँ
तुम्हारे लिए
बहुत सा प्यार लेकर।
तुम्हारे बदल जाने के बाद भी।

                                          -  दिनेश गौतम

5 comments:

दीपिका रानी said...

प्रेम और विरह की सुंदर कविता...

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया said...

बेहतरीन अभिव्यक्ति सुंदर कविता,,,, ,

MY RECENT POST,,,,काव्यान्जलि ...: ब्याह रचाने के लिये,,,,,

रश्मि प्रभा... said...

न कहीं कंपन,
न कोई हलचल
पर फिर भी
इर्द गिर्द उसके
जाने क्योँ
मंडराती रही थीं
भावनाएँ
तुम्हारे लिए
बहुत सा प्यार लेकर।
तुम्हारे बदल जाने के बाद भी।... ये है प्यार , जो अपनी जगह होता है अपनी सोच के साथ

Rachana said...

भावनाएँ
तुम्हारे लिए
बहुत सा प्यार लेकर।
तुम्हारे बदल जाने के बाद भी
bahut khoob pyar yahi to hai
rachana

dinesh gautam said...

धन्यवाद दीपिका जी, धीरेन्द्र जी, रश्मिप्रभा जी और रचना जी, आप सभी की नियमित टिप्पणियाँ मुझे बहुत आत्मीय लगती हैं और उत्साह से भर देती हैं। आप सभी का आभारी हूँ।