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Monday, 27 February 2012

वह मसीहा हो गया...

आँधियों के बीच फँसकर वह कहीं पर खो गया,
कुछ नहीं जब बन सका तो वह मसीहा हो गया।

हम समझते थे मुसीबत में बचा लेगा हमें,
चीखते ही हम रहे वह ओढ़कर मुँह सो गया।

देखने में था भला वह, इक फरिश्ते की तरह,
पर अँधेरा फैलते ही एक शैताँ हो गया।

लौटकर आया नहीं वो लाख कोशिश की मग़र,
दिल की नगरी छोड़कर, दिल से निकलकर जो गया।

रेत के थे कुछ घरौंदे ख्वाब मेरे क्या कहूँ,
वक्त का बेदिल समंदर आज जिनको धो गया।

दर्द इतने हो गए हैं, औ ज़रा सी जि़ंदगी,
जिसने भी किस्सा सुना बस चार आँसू रो गया।

- दिनेश गौतम

Tuesday, 21 February 2012

उनकी क्या है बात....

उनकी क्या है बात, वे स्वर्णिम शिखर बनकर रहेंगे,
हम तो हैं बेबस बेचारे, नींव के पत्थर रहेंगे।

उनकी आँखें की चमक हीरों से बढ़ती जाएगी,
और अपने ये नयन तो, अश्रुओं से तर रहेंगे।

तितलियों से बोल दो, इस बाग में न यूँ फिरें,
एक दिन वरना उन्हीं के, कुछ नुचे से पर रहेंगे।

लाख रोकें हम शलभ को दीप की लौ पर न जा,
प्यार पागलपन है ऐसा, वे तो बस जलकर रहेंगे।

नफरतों की वो इमारत अब ढहा दी जाएगी,
इस नगर में तो हमारे, प्यार के ही घर रहेंगे।

देखना तुम जुल्म के आगे झुकी सब गर्दनें,
एक मेरा, इक तुम्हारा दो ही ऊँचे सर रहेंगे।

ये अजब है बात, जिनको चाहिए न हों वहाँ,
वे ही लेकिन उस जगह पर, देखना अक्सर रहेंगे।

खो चुके हैं जो चमक, वे दिख रहे बाज़ार में,
पर असल में हैं जो मोती, सीप के अंदर रहेंगे।
- दिनेश गौतम

Sunday, 12 February 2012

उतरा है धरती पर फागुन अभिराम...

उतरा है धरती पर फागुन अभिराम,
कोमल है दोपहरी, शीतल है शाम,

लहरों पर तैर रहे, झरे हुए पात,
नदिया को भा गई है मौसम की बात,
बगिया ने सौंपे हैं नए-नए फूल,
उड़-उड़ है नाच रही राहों पर धूल,
हवा लिख रही है आज पत्तों पर नाम...।

टेसू पर नाच रही प्यारी सी अरुणाई,
कोयल की कूकों से गूँजी है अमराई,
लाज भरी कलियों ने झाँका है घूँघट से,
उभरी है कोई हँसी, कहीं किसी पनघट से
सूरज लो निकला उस फुनगी को थाम...।

गुनगुनाते भँवरे अब निकले हैं टोली में,
रस भर-भर आया है चिडि़यों की बोली में,
चाँदी ज्यों बहती है , हँसते से झरनों में,
चमक रहे हैं पत्ते सूरज की किरनों में,
हरियाई है इमली, बौराया आम...।

शाखों में पंछी अब चहक-चहक उठते हैं,
उपवन के कोने अब महक-महक उठते हैं,
मौसम के मंतर से तन-मन फगुनाया है,
बहक-बहक जाएँ कदम क्या खुमार छाया है,
छलक-छलक जाते हैं हाथों से जाम...।
- दिनेश गौतम

Thursday, 9 February 2012

फागुनी दोहे

फागुन का आना हुआ , गए सभी दुख भूल ,
कुंजन कूकी कोकिला, उपवन महके फूल।

चंदा ने चालें चली, फेंका ऐसा पाश,
बँधी चाँदनी चल पड़ी, मौन रहा आकाश।

क्यारी-क्यारी फैल गई मस्तानी सी गंध,
फागुन पढ़ने आ गया मादकता के छंद।

रंग से भीगी देह ने खोला है ये राज,
टहनी ज्यों कचनार की भीग गई हो आज।

चाौपालों में गूँजते लगते ऐसे फाग,
छेड़ दिया ज्यों काम ने कोई मादक राग।

दावानल सा देखकर भीत हुआ आकाश
जब टेसू पर उतर गया जंगल में मधुमास।
- दिनेश गौतम

Tuesday, 7 February 2012

फागुनी दोहे

फागुन का आना हुआ, गए सभी दुख भूल ,
कुंजन कूकी कोकिला, उपवन महके फूल।

चंदा ने चालें चली, फेंका ऐसा पाश,
बँधी चाँदनी चल पड़ी, मौन रहा आकाश।

क्यारी-क्यारी फैल गई मस्तानी सी गंध,
फागुन पढ़ने आ गया मादकता के छंद।

रंग से भीगी देह ने खोला है ये राज,
टहनी ज्यों कचनार की भीग गई हो आज।


चाौपालों में गूँजते लगते ऐसे फाग,
छेड़ दिया ज्यों काम ने कोई मादक राग।

दावानल सा देखकर भीत हुआ आकाश
जब टेसू पर उतर गया जंगल में मधुमास।
- दिनेश गौतम