(आज छत्तीसगढ़ का स्थापना दिवस है। हरे भरे और हर दृष्टि से संपन्न इस राज्य में पर्यटन की अपार संभावनाएँ हैं। इसके विभिन्न महत्वपूर्ण दर्शनीय स्थलों को लेकर मैंने एक कविता लिखी थी “छत्तीसगढ़ दर्शन” इस कविता को राज्य शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद ने अपनी पत्रिका बालमित्र में पहली बार अक्टूबर 2007 के अंक में प्रकाशित कर 2008 से कक्षा 8वीं की हिंदी भाषा की पाठ्यपुस्तक भारती में सम्मिलित किया है। तब से छत्तीसगढ़ के बच्चे और शिक्षक इसे पढ़ते आ रहे हैं। आज यह कविता अपने फेसबुक के मित्रों के लिए खास तौर से... )
अपना प्रदेश देखो, कितना विशेष देखो,
आओ-आओ घूमो यहाँ ,खुशियों से झूमो यहाँ।
रायपुर की क्या सानी? अपनी है राजधानी,
ऊँचे-ऊँचे हैं मकान, यहाँ की निराली शान।।
“कोरबा” की बिजली हम सब को मिली ।
“देवभोग” का है मान, हीरे की जहाँ खदान,
लोहे की ढलाई देखो, देखो जी भिलाई देखो,
गूँजे जहाँ सुर-ताल, खैरागढ़ बेमिसाल।।
“राजीव लोचन” यहाँ, रम जाए मन जहाँ,
तीरथ में अग्रगण्य, देखो-देखो “चम्पारण्य”
गूँजे जहाँ सत्यनाम, “गिरौदपुरी” है धाम,
कबिरा की सुनो बानी, “दामाखेड़ा” की जुबानी।।
महानदी धार देखो, “सिरपुर” औ “मल्हार” देखो,
“डोंगरगढ़ बमलाई देखो, “रतनपुर महमाई” देखो।।
देवी “बेमेतरा” वाली, देखो-देखो “भद्रकाली”
मंदिर एकमेव देखो, देखो “भोरमदेव” देखो।।
देखो ऊँचा “मैनपाट”, बड़े ही कठिन घाट,
तिब्बती मकान देखो, कितनी है शान देखो।।
“बस्तर” के वन देखो, वहाँ भोलापन देखो,
ऊँचे-ऊँचे, झाड़ देखो, नदी और पहाड़ देखो।।
झरने हैं झर-झर, गुफा है “कुटुमसर”,
“तीरथगढ़ प्रपात” देखो , “दंतेश्वरी मात” देखो।।
अपना प्रदेश है ये, कितना विशेष है ये,
सबका दुलारा है ये, सच बड़ा प्यारा है ये।।
दिनेश गौतम